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Showing posts from April, 2018

समाज के नेतृत्व कर्ता पर राधेश्याम उइके के स्वतंत्र विचार

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जनप्रतिनिधि समाज का नेतृत्वकर्ता रक्षक होता है भक्षक नही....... आज सोशल मीडिया के जमाने में पुरे भूगोल की जानकारी 1 सेकंड में प्राप्त हो जाती है देश विदेश की खबरे प्रिंट मीडिया में आने से पहले व्यक्ति के मोब0 में होती है। वास्तव में सोशल मीडिया ने देश में नयी क्रान्ति ला दी है और इसी का नतीजा है के आज भारत जेसे विकास शील देश में बगावत की लहर चल रही है और ये बगावत किसी सरकार के खिलाफ नही जनता अपने हक अधिकार की रक्षा के लिए देश की व्यवस्था से सवेंधानिक रूपसे लेने के लिए धरना,प्रदर्शन,रैली,ज्ञापन के माध्यम से कर रहे है। इसका असर भी साफ़ दिखा लेकिन इसकी विपरीत जब *समाज का प्रतिनिधि जिसे हम* *पार्षद,सरपंच,जनपद,जिला जनपद,विधायक,हो सांसद सभी को समाज के लोग चुनकर उस जगह पर इसलिए भेजते है ताकि वो उसके समाज के हक अधिकार की बात करे,शोषण अत्याचार से मुक्त कराकर नए समाज का निर्माण करे समाज के सुख दुःख में सहभागिता कर समाज को आगे ले जाए और उनकी रक्षा सवेंधानिक रूपसे करे,लेकिन उसके विपरीत  आज यही समाज के रक्षक पार्टी के चुंगुल में फसकर पार्टी और अन्य लोगो की भाषा बोलकर समाज के भक्षक बनते जा रहे

29 अप्रैल 2018 पर विशेष सेमिनार का आयोजन

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चलो सिवनी एक दिवसीय सामाजिक सेमिनार 29 अप्रैल आयोजक- इंस्टीट्यूट ऑफ कोयान दा विजन सिवनी हम पढेंगे हम बढ़ेंगे चलो चले शिक्षा की ओर........... इंस्टीट्यूट मीडिया- 29 अप्रैल 2018 दिन-रविवार को महत्वपूर्ण सेमिनार का आयोजन रखा गया है जिसमें समाज के युवक-युवतियों को महत्वपूर्ण मार्गदर्शन व सामाजिक मिशन से अवगत कराकर उन्हें नेतृत्व योग्य बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इंस्टीट्यूट ऑफ कोयान दा विजन की पहल मे शामिल होने के लिए आप हमारे इंस्टीट्यूट से जुड़े एवं समाज को भी जोड़ें! अधिक जानकारी के लिए इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर लागिन करें। इंस्टीट्यूट ऑफ कोयान दा विजन नेतृत्व क्षमता विकसित करने के लिए प्रयत्नशील है इंस्टीट्यूट चाहता है कि आदिवासियों मे नेतृत्व की इकाई को बेहतर तरीके से खड़ी करनी होगी और क्रांतिकारी परिवर्तन करने की तैयारी जोरों से करनी होगी ! गोंडवाना आंदोलन हो या आदिवासियों के कोई भी सामाजिक संगठन इन्होंने अपनी लड़ाई बखूबी लड़ी है और लड़ रहे हैं लेकिन उन जिम्मेदार लीडरों मे सही नेतृत्व की कमी रह जाने के कारण वो सफलतापूर्वक सफल नही हो पा रहे है! इंस्टीट्यूट ऑफ कोयान दा विजन की इ

पर संस्कृति के नकारात्मक प्रभाव

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#पर-संस्कृति-ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव(एक विश्लेषण)- रावेनशाह सगाओं हमने दूसरों की संस्कृति की स्वीकारता की है तो उसके दुष्परिणाम भी हमारे सामने है! तात्कालिक लाभ अथवा प्रतिष्ठा के लिए अपनाए गए अन्य संस्कृतियों के तत्व यदि संरचना और मूल्यों से सामंजस्य स्थापित नही कर सकते है तो उनका प्रभाव हानिकारक हुआ है! शक्ति पूर्वक कराए गए परिवर्तन अनेक विनाशकारी प्रभावों को जन्म देकर हमारी संस्कृति की जीवन-शक्ति का ह्रास करते है पर-संस्कृति ग्रहण अनेक तरह की समस्याओं को जन्म देती है खास तौर पर इसके विकृत प्रभाव हमारी-अपनी संस्कृति मे अधिक हुए है जहां नवीन वस्तुएं और विचारधारा को जबरन थोपे जाते है! यह बात प्रमाणित होती है कि सरल और सादा जीवन वाले समाज मे अनावश्यक हस्तक्षेप एवं सम्पर्क के गम्भीर दुष्परिणाम हुएे है! भारतीय मूलवासी समाज ने पिछली तीन शताब्दियां अत्यंत ऊहापोह मे व्यतीत की है! आर्यों के आगमन से लेकर आजाद भारत स्वतंत्रोत्तर भारत तक जितने आघात हुए है उनमे यदि देखा जाए तो बचाव के गर्भ मूल कारण इनकी संस्कृति ग्रहिता की वास्तविक शक्ति ही है ! जंगलों का सतत् दोहन, खनिज क्षेत्रों का व्याप

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कोयान दा  विज़न 

आदिवासियों की धधकती आवाज - रावेनशाह उईके

हजारों वर्षों से जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को हमेशा से दबाया और कुचला जाता रहा है जिससे उनकी जिन्दगी अभावग्रस्त ही रही है। इनका खुले मैदान के निवासियों और तथाकथित सभ्य कहे जाने वाले लोगों से न के बराबर ही संपर्क रहा है। केंद्र सरकार आदिवासियों के नाम पर हर साल हजारों करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में करती है। इसके बाद भी 6-7 दशक में उनकी आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वास्थ्य सुविधाएं, पीने का साफ पानी आदि मूलभूत सुविधाओं के लिए वे आज भी तरस रहे हैं। इन सभी बातों को जानने के बावजूद आदिवासियों की समस्या को तय कर पाना कतई आसान नहीं है। हर क्षेत्र की परिस्थितियां अलग-अलग हो सकती है, जैसे कि कई क्षेत्रों के आदिवासी बिना मूलभूत सुविधा के ही संतुष्ट हों तो कहीं इन सब की दरकार भी हो सकती है। कहने का अर्थ यह है कि समस्या अलग-अलग क्षेत्रों में रह रहे आदिवासियों की भिन्न-भिन्न हो सकती है। वैसे सामान्यतः ऐसा होता नहीं है क्योंकि आदिवासी समाज की अपनी एक पहचान है जिसमें उनके रहन-सहन, आचार-विचार एक जैसे ही होते हैं। इधर बाहरी प्रवेश, शिक्षा और संचार माध्यमों