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Showing posts from March, 2018

मुझे पहचानने में आसानी होगी।

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Positive thinking अच्छे ने अच्छा और, बुरे ने बुरा जाना मुझे। क्योंकि जिसकी जीतनी जरुरत थी, उसने उतना ही पहचाना मुझे।। Exited filing https://www.instagram.com/p/BgjagfUBjaPhaBHhjCWrv3WPIKTEgSebpEdMxU0/?r=wa1 AN INSTITUTE OF KOYAN THE VISION SEONI (MP) http://www.koyanthevision.online

गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन (रावेनशाह उईके)

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गोंडवाना आंदोलन नेतृत्व क्षमता की कमी से बहुत बुरी तरह गुजर रहा है जो लोग नेतृत्व कर रहे हैं उनमें सामूहिक विसंगतियों की मार पड रही है? सेवाजोहार की दृष्टिकोण से भी गोन्डवाना आंदोलन विफल रहा है अहंकार नेतृत्व से गोंडवाना का अधिक समय से दोहन होते आ रहा है दूरगामी सोच से गोंडवाना आंदोलन बहुत दूर है। सफलता के लिए नैतिकता के आधार पर शुद्धता खड़ी करनी होगी इसके लिए हमें वैज्ञानिक वैचारिक मंच की आवश्यकता को समझनी चाहिए ? सेवाजोहार गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन https://www.koyanthevission.online

रावेनशाह उईके एक सामाजिक योद्धा प्रशासन पर पड़ रहे महंगे

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उलगुलान उलगुलान उलगुलान ⚔⚔⚔⚔⚔⚔⚔⚔ जल जंगल जमीन का संघर्ष जारी है और जारी रहेगा​​​​ ⚔⚔⚔⚔⚔⚔⚔⚔⚔ मध्यप्रदेश के सिवनी जिला   आंशिक वर्जित क्षेत्र छपारा से रावेन शाह उईके के द्वारा सूचना का अधिकार 2005 धारा 6 (1) के तहत जानकारी चाही गई कि ​भारत शासन अधिनियम 1935 के खंड 91 व 92 के तहत आंशिक वर्जित क्षेत्र छपारा में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कितनी जमीन है ? केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत सरकार सड़क, भवन, कारखाने, उद्योग किसकी जमीन में बनाये जा रहे है​ उक्त चाही गई जानकारी के सबध में तहसीलदार छपारा के द्वारा अभिलेख संधारित न होने की जानकारी दी गई  । तहसीलदार छपारा को भी ये नही पता कि आंशिक वर्जित क्षेत्र में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कितनी जमीन है , भूमि मालिक का नाम नही पता। इसकी जानकारी प्रथम अपीली अधिकारी तथा राज्य सूचना आयोग के बाद भी जानकारी उपलब्ध न होने की स्थिति में यह समझा जावेंगा की केंद्र सरकार और राज्य सरकार पारम्परिक ग्राम सभा की जमीन को अवैध रूप से सरकारी जमीन के नाम पर जबरन कब्जा किया है , आदिवासियों की जमीन छिनने का काम कर रही । भारत का संविधान कहता ह

जरा सोचो देश मे क्या चल रहा है?

विचारणीय प्रश्न? *✅ जो लोग मानते हो की आरक्षण की वजह से ही देश बर्बाद हुआ है, तो फिर यह पोस्ट सिर्फ उनके लिए ही है....जरूर पढ़ें!* ✅✅✅✅✅✅✅✅✅ *"लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार भी तुम्हारा है।* *तुम झूठ को सच लिख दो अखबार भी तुम्हारा है।* *तुम जो कहो वो सच, हम जो कहें वो झूठ* *मुल्क में नफरत का ऐसा तूफान मचा ड़ाला है।"* *कुछ बुद्धिमान बोलते है कि आरक्षण ने देश को बर्बाद कर दिया"* *☄(1) अब आप बताइये कि देश आजाद होने के बाद 14 व्यक्ति देश के राष्ट्रपति बने उनमे से कितने आरक्षण वाले बने....* *☄(2) 15 प्रधानमन्त्री बने उनमे से कितने आरक्षण वाले बने...* *☄(3) 43 उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश बने कितने आरक्षण वाले बने...* *☄(4) 19 मुख्य चुनाव आयुक्त बने उनमे से कितने आरक्षण वाले बने...* *☄(5) देश के जो बड़े घोटाले हुए उनमे कितनेSC/STे घोटालेबाज हैं, बताएं ज़रा...* *☄(6) आप बताइये भारत देश में कितने SC/STलोग ऐसे बड़े कॉर्पोरेट घरानों के व्यवसायी हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं ?* *☄(7) अब आप बताइये देश को बर्बाद कौन कर रहा है....अगर सम्भावित ब्लै

जानना बहुत जरूरी है

*अनुसूचित क्षेत्रों को खत्म करने का रास्ता है पैसा एक्ट* आदिवासियों के हक व अधिकार की लड़ाई जारी है और जारी रहेगी। जल जंगल जमीन का संघर्ष का इतिहास बहुत पुराना है जिस जल जंगल जमीन के लिए मेरे पुरखो ने कुर्बानी दी, शाहिद हुये उनकी कुर्बानी बेकार नही जाने देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है अनुसूचित क्षेत्र में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की एक इंच जमीन नही है फिर अनुसूचित क्षेत्र में गैर आदिवासी किस की जमीन पर बसा है, फिर अनुसूचित क्षेत्र में बसा गैर आदिवासी जब मतदान करता है तो वह मतदान सवैधानिक कैसे हो सकता? भारत का सविधान कहता है आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासी नही खरीद सकता फिर अनुसूचित क्षेत्र में गैर आदिवासी कैसे बस रहा है। यह तो संविधान का उल्लंघन किया जा रहा है । केंद्र सरकार और राज्य सरकार पैसा कानून के तहत अनुसूचित क्षेत्र में हावी हो रही है, पैसा कानून के तहत गैर आदिवासियों , फैक्ट्रीयो बसा रही है, अनुसूचित क्षेत्र को धीरे धीरे दीमक की तरह खत्म कर रही है , अनुसूचित क्षेत्र को सामान्य क्षेत्र बनाने की कोशिश कर रही है। हमे समाधान की आवश्कता है हमारे जल जंगल जमीन को बचाने का समाधा

भीड़ का महत्व

''भीड़'' ना मै भीड़ हूँ ना ही मै भीड़ का हिस्सा  हूँ मै तो भीड़  की खोज मे हूँ वो भीड़ जो दृष्टिकोण  के बदलाव से संघठन बने। भीड़ का नाम ही् प्रजा है भीड़ के आगे सजा है वो भीड़ जो पुलिस भीड़ देख कर ना भागे ॥ हम अभी भेड़ के भीड़ में है ना दिशा  है ना ही मंजिल  है विषय है तो जानकर पीछे  है यह वही  भीड़ है जो महापुरूषों के साथ हैॅ जो डर के आगे लाचार और गुम हो जाती  है कभी  बच्चों  का डर तो कभी नोकरी जाने का डर संविधान  बचाने के लिऐ तो कभी कभी  संविधान  का डर भीड़ चलाने में धन का अभाव कुशल नेतृत्व  की कमी तो भीड़ में आपसी  फूट की भरमार खीच रहे टांग अपनों की मु्‌र्दों की इसी भीड़ में ॥ भीड़ मे दौड कर आगे है कुछ लोग  भीड़ तोडकर आगे है। तो कुछ  भीड़ जोड़कर आगे है ये सिलसिला यूँ  ही चलता  रहेगा ॥ भीड़ को जोड़ कर भीड़ तोडकर दोडकर हम सब आगे बढते रहेगे मगर भीड मे वो मजदूर लाचार असहाय गरीबी  के बोज तले दबे हुये है कहता है मुझे  भीड़ बनाकर ले जाते है । भीड़ की शान हूँ  मै । भीड़ का पीडित भी मै ही हूँ ॥ ये भीड़ तो दो वक्त गरीब  की रोटी का  क

जागरूक व्यक्ति के आवश्यक गुण

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* वैज्ञानिक तर्क-वितर्क ही सफल जीवन का मूल आधार हैं ! पढा-लिखा होना और जागृत होना दोनो में अंतर है । किताबों को पढ लेने से, या डिग्रियां हासिल कर लेने से कोई जागृत नहीं कहा जा सकता। हर शिक्षित व्यक्ति जागृत ही हो ऐसा नहीं है। * जागृति का प्रथम सिद्धांत है:- अपने दोस्त की पहचान होना । *जागृति का दूसरा सिद्धांत है:- अपने दुश्मन की पहचान होना । *जागृति का तीसरा सिद्धांत है:- अपनी ताकत और कमजोरी मालूम होना । * जागृति का चौथा सिद्धांत है:- दुश्मन की ताकत और कमजोरी मालूम होना। *जागृति का पांचवां सिद्धांत है:- अपने महापुरुषों का इतिहास मालूम होना । यह पांच बातें अगर आपको मालूम है,और आप अनपढ़ भी हो, फिर भी आप जागृत कहे जा सकते हो । अगर आप को ये पांच बातें नहीं मालूम है, और आप शिक्षित भी हो, फिर भी आप जागृत नहीं हो | ®आप डॉक्टर, वकील इंजिनियर, प्रोफेसर, IPS, lAS, हो सकते हो ।_ मगर आप जागृत नहीं कहे जा सकते । * शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक जागृति बहुत जरूरी है, समाज उत्थान के लिये । * हमारे पढे लिखे अधिकारी, कर्मचारी, PhD holder, उच्च शिक्षा

रावेनशाह के सामाजिक विचार.......

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प्राकृतिक संरचना पर जीवित है कोयावंशियों का सामाजिक संविधान - रावेनशाह उईके _एक महान गोटुल के प्राकृतिक गुणों पर आधारित पारम्परिक व्यवस्था जो नैतिक व व्यवहार परख ही नही बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सत्य की कसौटी पर खरा उतरती है, ऐसी व्यवस्था जो किसी भी अवस्था मे सत्य की खोज पर निर्भर करती है वह पारम्परिक ग्राम(नार) व्यवस्था ही है! कोयतुड सगा बिडार इसी व्यवस्था से ही क्यों आधुनिकता पर क्यों नहीं आते इसीलिए कि प्राकृतिक संसाधनों व प्रकृति के प्रति वो प्रेम रखते हैं! प्रकृति व निसर्ग की वस्तु व चिकित्सा को वो अपनाते है उसके साथ सुरक्षित पाते है प्रकृति जीवनभर साथ ही नही बल्कि जीवन देती है और वह प्रेम करती है यही कारण है कि प्रकृति के अनुरूप ही कोयतोडियन व्यवस्था वैज्ञानिक व्यवस्था है अंधश्रध्दा एवं पाखंड से वो दूर है और मानव निर्मित व्यवस्था से वो शासित भी नही होते है! कोयावंशियो के रक्त मे यह है कि उनका खून ही अनुमति नही देता कि वो किसी को नुकसान पहुँचाए  बल्कि आवश्यकता के स्तर से ही प्रकृति से अनुमति लेकर ही उसका उपयोग करते है यदि वो एक पेड़ काटेंगे तो वो पेड़ की सुरक्षा व पेड़