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Showing posts from June, 2019

पाँचवी अनुसूची क्षेत्र

#बैलाडीला_उलगुलान  संवैधानिक उपबंधो के आधार पर पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में आदिवासीयों की भाषा,संस्‍कृति ,आस्‍था तथा उनके संरक्षण को ध्‍यान मे रखते हुए चाहे..भुपेशसरकार,मोदीसरकार एवं NMDC उपक्रम तथा तमाम अडानी जैसे कार्पोरेट आदि का प्रवेश वर्जित है ।                                              समता बनाम राज्‍य आंध्रप्रदेश                                  फैसला                       11जुलाई1997     पैराग्राफ में लिखित Contract / करार संधि का मतलब- .) सुप्रीम कोर्ट के समता जजमेंट 1997 के अनुसार वर्तमान की पांचवी अनुसूची और छठी अनुसूची( जो कि इंडियन स्टेट्स और ट्राइबल एरिया के अंदर backward area and backward tribe कहे गए)ब्रिटिश भारत के अधीन नहीं थी, जिस वजह से भारत के राजनेताओं के अधीन सिर्फ ब्रिटिश भारत अर्थार्त संविधान का अनुछेद 1 की शासन अधिकारिता आई। समता जजमेंट के अनुसार           In addition to this excluded and partially excluded areas, there were in the territory of India certain" tribal areas", which were defined in the Government of India A

कुदरत को समझो

देश के आर्थिक स्थति के साथ साथ तेज गर्मी के कारण व हवाई यात्रा से दिनों दिन मृतकों की संख्या में वृद्धि दर बढ़ते ही जा रही हैं।। अब देश बदलने की तैयारी में बढ़ते ही जा रहा है। प्रकृति अपनी मूल - भौतिक स्थति की ओर अग्रसर है। अब आदिम समुदाय को जो प्रकृति के नियमों से अनभिज्ञ हैं। उन्हें समय रहते प्रकृति के नियमों को समझने की जरूरत है। अपनी मूल जीवनी प्राकृतिक व्यवस्था में जल्द लौट आओ।। और प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए। उनके अनुसार जीवन यापन जीना शुरू कर दो। हो सकता है। कुदरत रहम कर दे। और किए गए कार्य प्रकृति के विरूद्ध से माफ कर दे। कुदरत दिनों दिन परिवर्तन की दिशा में तेज से बढ़ती जा रही है।। जल्द 92% मानवों को कुदरत जड़ से उखाड़ फेंकने की ओर अग्रसर है। मानव द्वारा निर्मित कानून कोई भी इंसान तोड़ सकते हैं। ओर तोड़ भी रहे है।। प्रकृति द्वारा निर्मित कानून किसी ने तोड़ा नहीं। और कोई तोड़ भी नहीं सकता।। जितना मानव स्वार्थी बना है। जितना कुदरत को नुकसान पहुंचा रखा है। उनसे लाखो गुना  नुक्सान इन कुरुर मानवों को अब भुगतना पड़ेगा।। 🌴🌳🌾🌞🌎⭐💫💥☄🔥💧

पेड लगाओ , जीवन बचाओ

जल,जंगल,जमीन,जन,जानवर,जमीर और ज़बान की लड़ाई लड़ने वाले क़ौम को पिछड़ा, जंगली,विकास-विरोधी,नक्सलवादी कहने वाली वैचारिक बैद्धिकता से अपंग (माफ़ करें मोदी जी ने एक नया नाम दिया है.....दिव्यांग) पूंजीपरस्त,मौकापरस्त मीडिया के द्वारा जोर शोर से विश्व पर्यावरण दिवस मनाना हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध मुहावरे को जमीन पर जोर से पटक मारता है कि गुड़ तो खाना हैं लेकिन गुलगुले से परहेज़ करना हैं........ ये दौर कार्बन ट्रेडिंग (धनलोलुप पूंजीवादी राष्ट्रों) का दौर हैं बंधुओं/बहनों..........