पर संस्कृति के नकारात्मक प्रभाव

#पर-संस्कृति-ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव(एक विश्लेषण)- रावेनशाह
सगाओं हमने दूसरों की संस्कृति की स्वीकारता की है तो उसके दुष्परिणाम भी हमारे सामने है! तात्कालिक लाभ अथवा प्रतिष्ठा के लिए अपनाए गए अन्य संस्कृतियों के तत्व यदि संरचना और मूल्यों से सामंजस्य स्थापित नही कर सकते है तो उनका प्रभाव हानिकारक हुआ है! शक्ति पूर्वक कराए गए परिवर्तन अनेक विनाशकारी प्रभावों को जन्म देकर हमारी संस्कृति की जीवन-शक्ति का ह्रास करते है पर-संस्कृति ग्रहण अनेक तरह की समस्याओं को जन्म देती है खास तौर पर इसके विकृत प्रभाव हमारी-अपनी संस्कृति मे अधिक हुए है जहां नवीन वस्तुएं और विचारधारा को जबरन थोपे जाते है! यह बात प्रमाणित होती है कि सरल और सादा जीवन वाले समाज मे अनावश्यक हस्तक्षेप एवं सम्पर्क के गम्भीर दुष्परिणाम हुएे है!
भारतीय मूलवासी समाज ने पिछली तीन शताब्दियां अत्यंत ऊहापोह मे व्यतीत की है!
आर्यों के आगमन से लेकर आजाद भारत स्वतंत्रोत्तर भारत तक जितने आघात हुए है उनमे यदि देखा जाए तो बचाव के गर्भ मूल कारण इनकी संस्कृति ग्रहिता की वास्तविक शक्ति ही है !
जंगलों का सतत् दोहन, खनिज क्षेत्रों का व्यापक औधोगीकरण , उत्खन, व्यभिचार , धर्मांतरण आदि और मूलवासीयों को स्वतंत्रा के पश्चात राष्ट्रीय रूप से एकीकृत करने के शासकीय प्रयास इनके तत्वों के अध्ययन के बिना नियमों और नए कानूनों का क्रियान्वयन आदि ऐसे अनेक आयाम हैं जिन्होने मूलवासी अस्मिता के साथ छेडखानी की है?
दूसरा पहलू यह भी है कई बार आज भी मूलवासीयों के विद्रोह के स्वर भी मुखर किए जा रहे है और आज भी अहिंसक आंदोलन यह याद दिला रहे हैं कि मूलवासी अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को लेकर चिंतित हैं!
कृषि, पशुपालन,वनोपज , विवाह एवं अन्य रीति-रिवाजों मे आए मूलवासी परिवर्तन संस्कृति-ग्रहाता की प्रक्रिया का ही परिणाम है!
(बचाओ अपनी पहचान यह संस्कृति मे ही संभव है)
गोंडवाना समग्र क्रांती आंदोलन-युवा ईकाई म०प्र०-रावेनशाह

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