समाज के नेतृत्व कर्ता पर राधेश्याम उइके के स्वतंत्र विचार

जनप्रतिनिधि समाज का नेतृत्वकर्ता रक्षक होता है भक्षक नही.......
आज सोशल मीडिया के जमाने में पुरे भूगोल की जानकारी 1 सेकंड में प्राप्त हो जाती है देश विदेश की खबरे प्रिंट मीडिया में आने से पहले व्यक्ति के मोब0 में होती है।
वास्तव में सोशल मीडिया ने देश में नयी क्रान्ति ला दी है और इसी का नतीजा है के आज भारत जेसे विकास शील देश में बगावत की लहर चल रही है और ये बगावत किसी सरकार के खिलाफ नही जनता अपने हक अधिकार की रक्षा के लिए देश की व्यवस्था से सवेंधानिक रूपसे लेने के लिए धरना,प्रदर्शन,रैली,ज्ञापन के माध्यम से कर रहे है।
इसका असर भी साफ़ दिखा लेकिन इसकी विपरीत जब *समाज का प्रतिनिधि जिसे हम* *पार्षद,सरपंच,जनपद,जिला जनपद,विधायक,हो सांसद सभी को समाज के लोग चुनकर उस जगह पर इसलिए भेजते है ताकि वो उसके समाज के हक अधिकार की बात करे,शोषण अत्याचार से मुक्त कराकर नए समाज का निर्माण करे समाज के सुख दुःख में सहभागिता कर समाज को आगे ले जाए और उनकी रक्षा सवेंधानिक रूपसे करे,लेकिन उसके विपरीत  आज यही समाज के रक्षक पार्टी के चुंगुल में फसकर पार्टी और अन्य लोगो की भाषा बोलकर समाज के भक्षक बनते जा रहे है ।*
*यहा तक कि कुछ लोग तो समाज के खिलाफ और सविंधान के खिलाफ बयान बाजी कर समाज और सामाजीक कार्यकर्ताओ के खिलाफ ब्यान बाजी कर अपनी राजनेतिक रोटिया सेकने में लगे है।*
ये लोग समाज के नाम पर पद लेकर बेठे है लेकिन कार्य समाज के खिलाफ कर रहे है जिससे देसभर में जातिवादी,साम्प्रदायिक वातावरण निर्मित हो रहा है यहा तक की सामाजिक कार्यक्रम में भी जाने से परहेज करते है और समाज के सामाजींक कार्यकर्ताओ को बदनाम करने की कोशिस की जाना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है।
आरक्षण जेसे मुद्दे पर विरोधी बोल उस नेता का शमर्नाक है जो उसी आरक्षण की वजह से उस पद तक पंहुचा है और समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है।
विश्व रत्न बाबा साहेब ने 279 लोगो का नेतृत्व करते हुए विश्व का सर्वोच्च सविंधान लिखा इस देश का ऐसा भाग्य जिसे विश्व सलाम करता है लेकिन उसी व्यवस्था का विरोध करते है समाज के कुछ तुच्छ अज्ञानी लोग।
भला विश्व के ज्ञान के प्रतीक कहे जाने वाले बाबा साहेब अंबेडकर जी जिन्होंने संसार की समस्त डिग्रीयां विपरीत परिस्थियों में अर्जित कर देश को सर्वोच्च संविधान दिया।
आज समाज के कुछ नौजवान युवा,अधिकारी कर्मचारी और जिम्मेदार लोग मिलकर समाज में संवैधानिक जनजागृति ला रहे है समाज में नयी क्रान्ति को जन्म दे रहे है तो समाज के गद्दार नेता उनके खिलाफ षडयंत्र रचने लगे है।
और कुछ बरसाती मेंढक भी अनर्गल प्रेस वार्ता कर वातावरण दुषित कर रहे है।
*शायद इसे ही कहते है घर का भेदी लंका ढाये..*
अब समाज के जिम्मेदारों को जिम्मेदारी लेकर आगे आना होगा और समाज के लिए कुछ कर गुजरना होगा वरना वर्षो से शोषित समाज का निशान मिटने वाला है।
देखते है अब इस संवैधानिक लड़ाई में कौन जीतता है अज्ञानी धूर्त नेता या समाज के हितेषी कार्यकर्ता..???
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स्वतन्त्र विचारक
राधेश्याम उईके
लखनादौन, जिला-सिवनी
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