रावेनशाह उईके एक सामाजिक योद्धा प्रशासन पर पड़ रहे महंगे
उलगुलान उलगुलान उलगुलान
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जल जंगल जमीन का संघर्ष जारी है और जारी रहेगा
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मध्यप्रदेश के सिवनी जिला आंशिक वर्जित क्षेत्र छपारा से रावेन शाह उईके के द्वारा सूचना का अधिकार 2005 धारा 6 (1) के तहत जानकारी चाही गई कि भारत शासन अधिनियम 1935 के खंड 91 व 92 के तहत आंशिक वर्जित क्षेत्र छपारा में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कितनी जमीन है ? केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत सरकार सड़क, भवन, कारखाने, उद्योग किसकी जमीन में बनाये जा रहे है उक्त चाही गई जानकारी के सबध में तहसीलदार छपारा के द्वारा अभिलेख संधारित न होने की जानकारी दी गई । तहसीलदार छपारा को भी ये नही पता कि आंशिक वर्जित क्षेत्र में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कितनी जमीन है , भूमि मालिक का नाम नही पता। इसकी जानकारी प्रथम अपीली अधिकारी तथा राज्य सूचना आयोग के बाद भी जानकारी उपलब्ध न होने की स्थिति में यह समझा जावेंगा की केंद्र सरकार और राज्य सरकार पारम्परिक ग्राम सभा की जमीन को अवैध रूप से सरकारी जमीन के नाम पर जबरन कब्जा किया है , आदिवासियों की जमीन छिनने का काम कर रही । भारत का संविधान कहता है आदिवासियों की जमीन कोई भी गैर आदिवासी नही ले सकता। और आंशिक वर्जित क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकार एक व्यक्ति के समान है जो आदिवासी नही है। इस तरह शासकीय जमीन के नाम पर कब्जा भारत का संविधान का उल्लंघन होता है।
यह राज्य सूचना आयोग की कार्यवाही से स्पष्ट होगा राज्य सूचना आयोग के आदेश के बाद भी जानकारी उपलब्ध नही होती है तो जानकारी की अनुउप्लब्धता के कारण तहसीलदार छपारा की FIR फड़वाने का हक तो रावेन शाह उईके को जाता है।
🏹 🏹 🏹 🏹दिनांक 27/12/17 को कार्यालय आयुक्त जनजाति कार्य विभाग मध्यप्रदेश के द्वारा जारी पत्र में उल्लेख किया गया है कि जिन स्थानों में आदिवासियों द्वारा मंगल भवन निर्माण करने की मांग की जा रही है उन्हें शासकीय जमीन आबंटन के आदेश प्रसारित किए जाए एक तरफ तहसीलदार छपारा का पत्र यह कह रहा है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार की जमीन के अभिलेख संधारित नही रिकार्ड नही फिर ये आदिवासियों को मंगल भवन के लिए कौन सी शासकीय जमीन दे रहे है। क्या आयुक्त जनजाति कार्य विभाग मध्यप्रदेश यह जानकारी उपलब्ध कराएंगे की आंशिक वर्जित क्षेत्रों में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कितनी जमीन है? भूमि मालिक का नाम, खतियान नंबर?
शासन और प्रशासन आदिवासियों को गुमराह करने में लगी है, आदिवासी की जमीन को आदिवासियों को भीग में दें रही है । आयुक्त आदिवासी विभाग का नाम बदलकर जनजाति कार्य विभाग कर दिया, आदिवासी शब्द हटा दिया।
आपके शब्द हटा देने से आदिवासी खत्म नही होने वाला है 70 *साल पहले संविधान से अनुच्छेद 13(5) को विलोपित किया* गया आदिवासी शब्द को हटाया गया उसके बाद भी आदिवासी जिंदा है और रहेंगा ।
अपने जल जंगल जमीन के लिये संघर्ष जारी है और जारी रहेगा
*मैं मूल भारत का नागरिक हूँ, भारतीय नागरिक नही*।
जय सेवा ,जय जोहार
हूल जोहार,जय बिरसा
रूढ़ि व प्रथा जिंदाबाद
बिरसा सेना मध्यप्रदेश
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