रावेनशाह के सामाजिक विचार.......

प्राकृतिक संरचना पर जीवित है कोयावंशियों का सामाजिक संविधान - रावेनशाह उईके
_एक महान गोटुल
के प्राकृतिक गुणों पर आधारित पारम्परिक व्यवस्था जो नैतिक व व्यवहार परख ही नही बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सत्य की कसौटी पर खरा उतरती है, ऐसी व्यवस्था जो किसी भी अवस्था मे सत्य की खोज पर निर्भर करती है वह पारम्परिक ग्राम(नार) व्यवस्था ही है!
कोयतुड सगा बिडार इसी व्यवस्था से ही क्यों आधुनिकता पर क्यों नहीं आते इसीलिए कि प्राकृतिक संसाधनों व प्रकृति के प्रति वो प्रेम रखते हैं! प्रकृति व निसर्ग की वस्तु व चिकित्सा को वो अपनाते है उसके साथ सुरक्षित पाते है प्रकृति जीवनभर साथ ही नही बल्कि जीवन देती है और वह प्रेम करती है यही कारण है कि प्रकृति के अनुरूप ही कोयतोडियन व्यवस्था वैज्ञानिक व्यवस्था है अंधश्रध्दा एवं पाखंड से वो दूर है और मानव निर्मित व्यवस्था से वो शासित भी नही होते है!
कोयावंशियो के रक्त मे यह है कि उनका खून ही अनुमति नही देता कि वो किसी को नुकसान पहुँचाए  बल्कि आवश्यकता के स्तर से ही प्रकृति से अनुमति लेकर ही उसका उपयोग करते है यदि वो एक पेड़ काटेंगे तो वो पेड़ की सुरक्षा व पेड़ लगाएंगे!
प्रकृति के संतुलन व प्रकृति के साथ समानांतर व्यवस्था को महत्व देते है यही व्यवस्था के कारण कोयावंशियो का संविधान उनकी सामाजिक व्यवस्था के लिए प्रकृति आधारित है!!
सबसे अहम बात यह है कि कोयातुड प्रकृति की ही गोंगो(पूजा) करता है सबसे ज्यादा दिल से मानता है जिस पर उसका जीवन सदा फूलता-फलता है! इसके बगैर वह नही रह सकता सामाजिक पारम्परिक व्यवस्था पर भी वो जो प्रयोग करेगा समानता, न्याय और स्वतंत्रता का वह सब प्रकृति आधारित ही करते हैं! प्रकृति कभी किसी के साथ भेदभाव नही करती ऊंचनीच नही समझती वैसा ही कोयातुड सगा बिडार समुदाय मे स्वतंत्रता का हनन नही होता बल्कि न्याय प्रिय प्रकाशित कर मनुष्य स्वतंत्र है जो पारम्परिक व्यवस्था से जुड़ा है जो प्रकृति आधारित है।!
आइये इस अनूठी संस्कृति व प्रकृति व्यवस्था को जीवित रखें!!
हम सब दृढ़ संकल्पित हो प्रकृति का शोषण नही करेंगे प्रकृति जीवों, नदी पहाड़ पेड़ों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लें!!
अाइये हम जीवनशैली मे फिर से प्रकृति सेवा को जोडें जहां हमारी जिंदगी सुरक्षित जीवित बसती हो!!
सेवा सेवा प्रकृति शक्ति
जय फडापेन
(रावेनशाह)

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