आखिर महिलाओं के प्रति असम्मान सूचक शब्द क्यों
आखिर महिलाओं के लिए असम्मान सूचक शब्द क्यों?
आज मैं अपने जीवन के बारे में सोच रहा था । नारी के कई रूप देखे है मैंने । इस कारण भारत देश में नारी को 'देवी' से भी तुलना किया गया है। कभी माँ बनकर। कभी पत्नी बन कर। कभी बहन बन कर। कभी दादी या नानी बन कर हमें सिर्फ प्यार और प्यार ही देती आई है । जब पैदा हुआ तो माँ के आँचल ने मुझे जीवन दिया। जब घुटनो से चलना सीखा और जब कभी मैं लड़खड़ा जाता और गिर जाता था तो माँ भाग कर मुझे उठा लेती थी और थपकिया देते हुए अपने सीने से लगा लेती थी। जब बोलना और चलना सीखा तो सबसे पहले मेरी माँ ‘गुरु’ बन कर शब्द ज्ञान और एक, दो, तीन, चार, लकीरे खींच कर सिखाई। जीवन का सबक मैंने अपनी माँ से ही सीखा। अगर व्यक्ति का चरित्र निर्माण अच्छा होगा तो समाज भी अच्छा ही बनेगा। आज जब मैं किसी बच्चे या बड़ो को माँ या बहन की गाली देते सुनता हूँ तो एक बार ख्याल आता है की क्या इनकी माँ और बहन या किसी और की माँ बहन में फर्क होता है क्या ?
क्या इनकी माँ इन्हें प्यार नहीं करती ! माँ तो माँ होती है फिर या तो वह आपकी माँ हो या किसी दूसरे की। 'माँ' की इतनी बेइज्जती क्यों ? कितने नालायक बच्चे है हमलोग एक 'माँ' की उपाधि को भी हम सम्मान नहीं दे पाए और सरेआम उनके उपाधि ' माँ ' को गंदे गालियों से नवाजते है। कभी सोच कर देखो, शर्म से मर जाने का मन करेगा। अगर कभी आत्ममंथन हो तो माँ को जाकर 'सॉरी' जरूर बोलिएगा। मेरी 'माँ' अब मेरे पास नहीं है , लेकिन आप तो 'सॉरी' बोल सकते है। 'माँ' शब्द को प्यार करे उन्हें गालियां ना दे , क्योंकि जो दूध आपने अपनी माँ के स्तन से पीया है वह आज खून बन कर आपके शरीर में दौड़ रहा है उसकी ही बदौलत आपका अस्तित्व है वर्ना आप जीरो है।
- R.s uikey
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