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Showing posts from February, 2019

हमारे माँ बाप के प्रति कर्तव्य- राधेश्याम उईके

🌾🌾🌾🌾 हमें अपने माँ बाप को सबसे ज्यादा महत्व देना चाहिए क्योंकि उन्हीं की बदौलत आज हमारा अस्तित्व है। किसी काल्पनिक देवी देवताओं की बदौलत नही। दर्द मापन के यूनिट को डेल ...

आखिर महिलाओं के प्रति असम्मान सूचक शब्द क्यों

आखिर महिलाओं के लिए असम्मान सूचक शब्द क्यों? आज मैं अपने जीवन के बारे में सोच रहा था । नारी के कई रूप देखे है मैंने । इस कारण भारत देश में नारी को 'देवी' से भी तुलना किया गया है। कभी माँ बनकर। कभी पत्नी बन कर।  कभी बहन बन कर। कभी दादी या नानी बन कर हमें सिर्फ प्यार और प्यार ही देती आई है ।  जब पैदा हुआ तो माँ के आँचल  ने मुझे  जीवन दिया। जब घुटनो से चलना सीखा और जब कभी मैं लड़खड़ा जाता और गिर जाता था तो माँ भाग कर मुझे उठा लेती थी और थपकिया देते हुए अपने  सीने  से लगा लेती थी। जब बोलना और चलना सीखा  तो सबसे पहले मेरी  माँ  ‘गुरु’ बन कर शब्द ज्ञान और एक, दो, तीन, चार, लकीरे खींच कर सिखाई। जीवन का सबक मैंने अपनी  माँ से ही सीखा। अगर व्यक्ति का चरित्र निर्माण अच्छा होगा तो समाज भी अच्छा ही बनेगा। आज जब मैं किसी बच्चे या बड़ो  को माँ या बहन की गाली देते सुनता  हूँ तो एक बार ख्याल आता है की क्या इनकी माँ और बहन या किसी और की माँ बहन में फर्क होता है क्या ? क्या इनकी माँ इन्हें प्यार नहीं करती ! माँ तो माँ होती है फिर या तो वह आपक...

इंस्टीट्यूट ऑफ कोयान दा विज़न संरचना पर संदेश

"इंस्टीट्यूट ऑफ़ कोयान द विज़न सिवनी" (म.प्र) गोंडी भाषा संस्कृति सरंक्षण, नेतृत्व क्षमता, संप्रेषण,स्वावलंबन एवं प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी हेतु प्रतिदिन संचालित प्रशिक्षण केंद्र--- कोयान एक प्रमुख सामाजिक संस्था है। शिक्षा संस्कृति की प्रक्रिया सामाजिक होने के कारण कोयान सामुदायिक जीवन का वह स्वरूप है, जिसमे समाज की निरंतरता ओर विकास के लिए सभी प्रभावपूर्ण साधन केंद्रित हैं। कोयान के इसी महत्व के कारण आदिम समुदाय का एक सामाजिक केन्द्रबिन्दु मना जाने लगा है । कोयान घर या विधालय की अपेक्षा शिक्षा संस्कृति का उत्तम स्थान है। कारण यह हैं कि यहाँ आदिम समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- सांस्कृतिक, सामाजिक ,व्यावसायिक तकनीकियों के साथ-साथ विभिन्न रूचियों, दृष्टिकोणों आदि  के विषय विशेषज्ञों तथा  विशेष मार्गदर्शक आते हैं । जो अतः परस्पर संपर्क ओर मार्गदर्शन से  विद्यार्थी उन बातों तथा गुणों को सीखते हैं जिन्हें वे घर की चारदीवारी के अंदर नही सिख सकते हैं। यदि विद्यार्थियों को संसार के ढंगों से परिचित कराना है, यदि उनको सामाजिक शिष्टाचार ओर सहानुभूति सिखानी है, यदि उनको...