सामाजिक नेतृत्व और नियंत्रण पर- रावेनशाह उईके
आदिवासियों के संगठनों मे दूरगामी सोच और स्थाई सृजनात्मक शक्ति ना होने की वजह से अस्तित्व को बचाने मे असफल हैं!
आज पूरे देश में हल चल मचा हुआ है अपने अपने समुदाय पहचान बचाने के साथ अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे है ! आदिवासी भी लड़ रहा है!
वरन देश के कई संगठनों ने स्थाई शक्ति होने की ताकत झोंक रखी है और वे सफल भी हुए है!
आदिवासियों के संगठनों में दूरगामी सोच नही दिखती बल्कि संगठन वाद की महत्वाकांक्षा को सँजोए हुए दिखती है! आदिवासियों के ज्यादातर संगठन मे संगठन के साथ व्यक्ति को स्थान दिया जा रहा है यही कारण है कि आदिवासी आंदोलन प्रखर नही बन सके!
आज के दौर में आदिवासी जागा हुआ महसूस कर रहा है परन्तु उसे सही गति देने की आवश्यकता महसूस की जा रही हैं, संगठन इस सोच से ऊपर उठने मे यदि कामयाब होते है तो विश्व के पटल मे आदिवासी फिर से प्रगति करते हुए देश मे परचम लहरायेगा!
समुदाय आज के दौर मे असुरक्षा से गुजर रहा है वह अपनी पहचान के साथ अधिकारों से वंचित होते जा रहा है!
जितनी जागृति और एकाग्रता अभी उसने लाई है उस लिहाज से आदिवासियों के संगठनों को एक और झुक कर समाज के लिए स्थाई सृजनात्मक शक्ति का संचय कर समाधान खोजनें की जरूरत है?
जल,जंगल,जमीन की लड़ाई हो या पहचान के साथ स्वाभिमान को बचाने की लड़ाई में शक्ति की आवश्यकता है और उसमें संगठनात्मक सोच को एकता की महती आवश्यकता है! यदि वर्तमान के समय आदिवासियों के संगठन ओछी मानसिकता से बाहर नही निकल पाते है तो वर्तमान पीढ़ी को पचास वर्ष से अधिक का समय संभालने मे लग जाएगा!
समुदाय को सही दिशा देकर उसे लायक बनाना आदिवासियों के संगठनों के हाथ मे निहित है!!
आदिवासी संगठन जुटें दूरगामी स्थाई आधारशिला रखने में बचाएँ अपने अस्तित्व और पहचान को!!
सामाजिक नेतृत्व और नियंत्रण की शक्ति को प्रभावशाली बनाकर समुदाय मे वैचारिक क्रांति के साथ समुदाय की लड़ाई को सफल किया जा सकेगा!!
- गोन्डवाना युवा रावेनशाह उईके
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